Friday 31 August 2018

लोग छोटे हो गए, ऊँचे घराने हो गए


क़ब्र  पर  इंसानियत की  आशियाने  हो गए
लोग  छोटे   हो  गएऊँचे   घराने  हो गए
मर चुके  थे यूँ तो हम इक बेरुखी से आपकी
ज़लज़ले,   सैलाब   और  तूफाँ   बहाने हो गए
चल झटक दे जेह्न से अब शाइरी का ये जुनूं
देख दिलवाले भी  अब  कितने सयाने हो गए
मुद्दतों  पहले  लगाया  था  इसे  दीवार पर
आइना  वो ही  रहा पर  हम  पुराने हो गए
आसमां  मुट्ठी में बस आने ही वाला था मगर
चंद अपनों की  सियासत  के  निशाने हो गए
*समीर परिमल*


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