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Friday 31 August 2018

तेरी बुनियाद में शामिल कई मासूम चीख़ें हैं

उसी  क़ातिल   का  सीने में  तेरे  ख़ंजर रहा होगा
कि जो छुपकर बहुत  एहसास के  अंदर रहा होगा
न जाने किस तरह ख़ामोश दरिया में मची हलचल
निगाहों  में  तेरी  शायद   कोई   कंकर  रहा   होगा
दरो-दीवार   से   आँसू  टपकते  हैं   लहू  बनकर
इसी कमरे में अरमानों का इक बिस्तर रहा होगा
तुम्हें भी हो गया धोखा ज़मीं  की इन दरारों से
समझ बैठे  हमेशा ही  ये  दिल बंजर रहा होगा
रहूँ ख़ामोश मैं फिर भी फ़साना बन ही जाता है
तेरे दिल में किसी अख़बार का दफ़्तर रहा होगा
कहीं सिमटा है सन्नाटे की   चादर ओढ़कर देखो
कभी बस्ती में वो भी खिलखिलाता घर रहा होगा
तेरी  बुनियाद में  शामिल  कई मासूम चीख़ें  हैं
इमारत बन  रही होगी तो  क्या मंज़र रहा होगा
मुझे शोहरत अता की ज़ह्र रुसवाई का पीकर भी
मेरे वालिद  के  भीतर भी  कोई शंकर रहा होगा
सुना है आपके  दिल में  रवाँ होने लगी नफ़रत
यक़ीनन बदगुमां परिमल’ कोई शायर रहा होगा




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