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Thursday, 11 October 2018

इस मुल्क की बर्बादी के आसार नज़र आते है


मुल्क तेरी बर्बादी के आसार नज़र आते है , 

चोरों के संग पहरेदार नज़र आते है 
ये अंधेरा कैसे मिटे , तू ही बता ऐ आसमाँ , 
रोशनी के दुश्मन चौकीदार नज़र आते है 
हर गली में, हर सड़क पे ,मौन पड़ी है ज़िंदगी , 
हर जगह मरघट से हालात नज़र आते है 
सुनता है आज कौन द्रौपदी की चीख़ को , 
हर जगह दुस्सासन सिपहसालार नज़र आते है 
सत्ता से समझौता करके बिक गयी है लेखनी , 
ख़बरों को सिर्फ अब बाज़ार नज़र आते है 
सच का साथ देना भी बन गया है जुर्म अब , 
सच्चे ही आज गुनाहगार नज़र आते है 
मुल्क की हिफाज़त सौंपी है जिनके हाथों मे , 
वे ही हुकुमशाह आज गद्दार नज़र आते है 
खंड खंड मे खंडित भारत रो रहा है ज़ोरों से , 
हर जाति , हर धर्म के, ठेकेदार नज़र आते है

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