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Wednesday 31 October 2018

जो हुआ सो हुआ

उठके कपड़े बदलघर से बाहर निकलजो हुआ सो हुआ,
रात के बाद दिनआज के बाद कलजो हुआ सो हुआ,

जब तलक साँस हैभूख है प्यास हैये ही इतिहास है,
रख के काँधे पे हलखेत की ओर चलजो हुआ सो हुआ,

खून से तर-ब-तरकरके हर रहगुज़रथक चुके जानवर,
लकड़ियों की तरहफिर से चूल्हे में जलजो हुआ सो हुआ,

जो मरा क्यों मराजो जला क्यों जलाजो लुटा क्यों लुटा,
मुद्दतों से हैं गुमइन सवालों के हलजो हुआ सो हुआ,

मन्दिरों में भजन मस्जिदों में अज़ाँ ? आदमी है कहाँ ?
आदमी के लिए एक ताज़ा ग़ज़लजो हुआ सो हुआ,

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