Thursday 1 November 2018

चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जाएंगें

तन्हा-तन्हा हम रो लेंगें महफिल-महफिल गाएंगें
जब तक आंसू पास रहेंगें तब तक गीत सुनाएंगें
तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं
देर न करना घर जाने में वर्ना घर खो जाएंगे
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जाएंगें
किन राहों से दूर है मंजिल कौन सा रस्ता आंसां है
हम जब थक कर रुक जाएगें औरों को समझायेंगें
अच्छी सूरत वाले सब ही सब ही पत्थर दिल हो मुमकिन है
हम भी उस दिन रो देंगें जिस दिन धोखा खायेंगें

No comments:

Post a Comment

Welcome On My Blog