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Sunday 23 December 2018

ज़ुल्म सहते रहें हर बार, ज़रूरी तो नही


प्यार देकर भी मिले प्यार, ज़रूरी तो नहीं
हर दफा हम होंख़तावार, ज़रूरी तो नहीं
खून रिश्तों  का बहाने को ज़ुबां काफ़ी है
आपके   हाथ  में  तलवार ज़रूरी तो नहीं
आपके   हुस्न  के  साए में जवानी गुज़रे
मेरे मालिक, मेरे सरकार, ज़रूरी तो नहीं
एक मंज़िल है मगर राहें जुदा हैं अपनी
एक जैसी रहे  रफ़्तारज़रूरी तो नहीं
दीनो-इमां की ज़रूरत है  आज दुनिया में
सर पे हो मज़हबी दस्तार, ज़रूरी तो नहीं
एक दिन आग में बदलेगी यही चिंगारी
ज़ुल्म सहते रहें हर बार, ज़रूरी तो नही


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