जन जन को लूटते हैं लूटते हैं गली गली
लूटी किसी की दौलत सुनाया जली-जली
ओहदे का है घमंड या इंसाफ मर गया
जो लूटते हैं जालिम मासूम सी कली
जो लूटते हैं आबरु होते नही इंसान
इनका कोई धर्म हिंदू है ना मुस्लमान
ला कर सरे बाजार करो इनपे ये जुल्म
महफिल जुटाओ और करो इनके सर कलम
दहशत रहेगी ऐसी तो ना होगा ये जुर्म
वसी खान
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