Sunday 25 November 2018

बाबरी मस्जिद का पूरा इतिहास (1885 से 2017 तक) पार्ट 1

Babri Masjid
"“सब्र का दुसरा नाम ‘भारतीय मुसलमान”
माननीय न्यायपालिका,
क्या आपने भारतीय मुसलमानों सा कोई सब्र करने वाला देखा ? क्या आपने इनसा कोई सहिष्णु समुदाय देखा ? क्या आपने इनसा कोई संविधान का पालन करने वाला देखा ? क्या आपने इनसा कोई न्यायालय पर विश्वास करने वाला देखा ? अगर आपका जवाब है कैसे, तो सुनिए।
इतिहास बताता है कि बाबरी मस्जिद वजूद के 40 साल बाद बाबर के ही पोते अकबर के कार्यकाल में गोस्वामी तुलसीदास के लिखे “राम चरित मानस” के बाद आज की अयोध्या का जन्म होता है, जहाँ बाबरी से दो किलोमीटर दूर एक क्षेत्र में महाराजा दशरथ का पूरा राजभवन भी बाबरी के सामने बनाया गया। अयोध्या के पश्चिमी छोर पर रामकोट मंदिर बनाया गया और यह अयोध्या में पूजा का प्रमुख स्थान बना , यह सभी को पता है कि रामकोट मंदिर इसलिए महत्वपूर्ण है कि यही माना गया कि यहीं पर रामचंद्र जी का जन्म हुआ, यह अयोध्या ही नहीं अयोध्या आने वाला बच्चा बच्चा जानता है। राम तथा सीता का निज भवन जिसे कनक भवन के नाम से जाना जाता उसका निर्माण भी बाबरी की आँखों के सामने ही हुआ , फिर इसी अयोध्या में हनुमानगढ़ी मन्दिर, राघव जी मंदिर, सीता रसोई और वह तमाम भवन बनाए गये जिसमें आज भी राजा दशरथ उनकी तीनों रानियों के कक्ष और अन्य सभी महत्वपूर्ण स्थान उपस्थित हैं जिसका वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने “राम चरित मानस” में किया है, जबकि बाबरी मसजिद इन सभी महत्वपूर्ण धार्मिक इमारतों से 2 किमी दूर है, और अपने वजूद से 1885 तक यानी 350 वर्ष चुपचाप शांति से अयोध्या के बदलते स्वरूप को देखती रही, न किसी ने इस जगह किसी अन्य धार्मिक स्थल की बात कही और न किसी ने बाबरी पर ऊंगली उठाई, तब तक हम केवल भारतीय बनकर रहते थे। तब भारत में बाबरी मुसलमानों की इबादतगाह थी।
"फिर अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान 1885 में शुरु हुआ बाबरी विवाद जिसे कुछ लोगों ने बड़ी चालाकी से भारत की सदियों से चली आ रही तहजीब का कत्ल करने में इस्तेमाल किया, 1885 में “महंत रघुवीर दास” ने फैजाबाद न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि “जन्म स्थान एक चबूतरा” जो मस्जिद से अलग उसके सामने है जिसकी लंबाई पूर्व-पश्चिम इक्कीस फिट और चैड़ाई उत्तर दक्षिण सतरह फीट है। इस “चबूतरे” की महंत स्वयं व हिंदू इसकी पूजा करते हैं।” इस दावे में यह भी कहा गया था कि यह चबूतरा चारों ओर से खुला है। सर्दी गर्मी और बरसात में पूजा करने वालों को कठिनाई होती है। इस लिए इस पर मंदिर बनाने की अनुमति दी जाए। लेकिन सरकार ने मंदिर बनाने से रोक दिया है इस लिए न्यायालय सरकार को आदेश दे कि वह मंदिर बनाने दे” सरकारी अभिलेखों और अदालती कार्यवाही में दर्ज है कि 24 दिसंबर 1885 को फैजाबाद के सब जज पं. हरिकृष्ण ने महंत रघुवीरदास की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि बाबरी मस्जिद के सामने मंदिर बनाने की इजाजत देने से हिंदू-मुसलमान के बीच झगड़े और खून खराबे की बुनियाद पड़ जाएगी। फैसले में यह भी कहा गया था कि मंदिर मस्जिद के बीच एक दीवार है जो दोनों पूजा स्थलों को एक दूसरे से अलग साबित करती है। मंदिर और मस्जिद के बीच यह दीवार 1857 से पहले बनाई गई थी। फैजाबाद के सब जज पं. हरि कृष्ण के फैसले के खिलाफ “राम जन्म स्थान” के महंत रघुवीर दास ने फैजाबाद के जिला जज कर्नल “जे आर्य” के यहां अपील की जिसका मुआयना करने के बाद इसे 16 मार्च 1886 को उस अपील को भी खारिज कर दिया गया। फिर जिला जज के इस फैसले के खिलाफ महंत रघुवीर दास ने ज्यूडीशिनल कमिश्नर जिसके पास पूरे अवध के लिए हाईकोर्ट के समान अधिकार थे, उनके पास अपील की जिसके बाद उन्होंने भी अपने फैसले के जरिए इस अपील को एक नवंबर 1886 को खारिज कर दिया ( पूरे प्रकरण की कापी कोई भी अदालतों से प्राप्त कर सकता है)।
इसके बाद 1885 से 1949 तक यानी 64 वर्ष तक ये विवाद नहीं के बराबर उठा, और पुरे देश ने एकजुट हो कर आजादी की लड़ाई लड़ी, क्या हिंदु क्या मुसलिम क्या सिख और क्या इसाई सभी ने कुर्बानियां दीं और भारत आजाद हो गया, लेकिन किसे पता था की आजादी के मात्र दो वर्ष बाद फिर से यह विवाद भड़क उठेगा, और फिर शुरु होगा मुसलमानों के सब्र का एक लंबा सफर जो आज 68 साल बाद भी कायम है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ध्यान दिजियेगा निचे के निम्न बिंदुओं पर।
• 1949: भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गयीं. कथित रुप से कुछ बहुसंख्यकों ने ये मूर्तियां वहां रखवाईं थीं. मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया. 23 दिसंबर 1949 को दर्ज हुई एफआईआर में इस घटना की सूचना संबंधित थाने के कांस्टेबल माता प्रसाद ने थाना इंचार्ज राम दुबे को दी जिसमें अयोध्या के पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इंचार्ज ने मुख्य रूप से तीन लोगों को नामजद किया था ~
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