Sunday 25 November 2018

बाबरी मस्जिद का पूरा इतिहास (1885 से 2017 तक) पार्ट 2

अभिराम दास, राम शकल दास और सुदर्शन दास , इसके अलावा 50 से 60 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी दंगा भड़काने, अतिक्रमण करने और एक धर्मस्थल को अपवित्र करने का मामला दर्ज किया गया था। इस एफआईआर का क्या हुआ आज तक किसी को पता नहीं। खुद देखिए उस “एफआईआर” की भाषा जो सरकारी अभिलेखों में दर्ज हुई , ध्यान रखियेगा कि यह अभिलेख स्वतंत्र भारत के सरकारी अभिलेख में दर्ज एक एफआईआर है ना कि मुगल औरंगजेब के शासन काल के अभिलेख में दर्ज कोई फरमान।
“50 से 60 लोगों का एक समूह बाबरी मस्जिद परिसर के ताले को तोड़कर, दीवारों और सीढ़ियों को फांदकर अंदर घुस आए और भगवान श्रीराम की प्रतिमा वहां स्थापित कर दी। साथ ही उन्होंने पीले और केसरिया रंग में सीता और रामजी, आदि की तस्वीरें मस्जिद की भीतरी और बाहरी दीवारों पर बना दीं. मस्जिद में घुसपैठ करनेवालों ने मस्जिद को ‘नापाक’ किया है। जिसके बाद कारवाई न होकर इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया गया, फिर भी मुसलमानों ने न्यायपालिका पर विश्वास किया और अदलिया से न्याय की मांग की।
• 1984: कुछ बहुसंख्यकों ने विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में राम जी के जन्म स्थल को “मुक्त” करने और वहाँ राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया. बाद में इस अभियान का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया, लेकिन मुसलमानों ने अदलिया पर भरोसा नहीं छोड़ा।
• 1986: ज़िला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाज़े पर से ताला खोलने का आदेश दिया. मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया, जो की अदलतिया कानून के कानुनी दायरे में रही हमेशा।
• 1989: विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज़ किया और विवादित स्थल के नज़दीक राम मंदिर की नींव रखी. लेकिन मुसलमानों ने सब्र रख न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।

‌• 1990: विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को कुछ नुक़सान पहुँचाया. तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने वार्ता के ज़रिए विवाद सुलझाने के प्रयास किए मगर अगले वर्ष वार्ताएँ विफल हो गईं, मुसलमानों ने उस समय भी न्यायालय पर विश्वास दिखाया।

• 1992: विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया. इसके परिणामस्वरूप देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज़्यादा लोग मारे गए। बताइए की क्या बीत रही थी "भारतीय मुसलमानों पर उस दिन जब अल्लाह के घर को शहीद कर दिया गया, और तब भी मुसलमानों ने न्यायालयपर विश्वास दिखाया।
• 2001: बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर तनाव बहुत बढ़ गया था उसपर विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने के अपना संकल्प दोहराया, लेकिन मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
• जनवरी 2002: अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया. वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया गया, मुसलमानों ने कहा हमें न्यायपालिका पर विश्वास है।
• फ़रवरी 2002: भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इनकार कर दिया. विश्व हिंदू परिषद ने उसी 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरु करने की घोषणा कर दी. सैकड़ों हिंदू कार्यकर्ता अयोध्या में इकठ्ठा हुए थे, मुसलमानों ने तब भी न्यायालय पर विश्वास दिखाई।
• 15 मार्च, 2002: विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात को लेकर समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे. रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में लगभग आठ सौ कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को अखाड़े में शिलाएं सौंपीं. और ठीक 22 जून 2002 को विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की माँग फिर से उठाई, तब भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास दिखाया।
• जनवरी 2003: रेडियो तरंगों के ज़रिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं, लेकिन अंत मे कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला। फिर भी मुसलमान ने न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
"अप्रैल 2004: आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण ज़रूर किया जाएगा. मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
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