Sunday 25 November 2018

बाबरी मस्जिद का पूरा इतिहास (1885 से 2017 तक) पार्ट 3

• जुलाई 2004: शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सुझाव दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंगल पांडे के नाम पर कोई राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाए. तब भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
• जनवरी 2005: लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस में उनकी कथित भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया, तब मुसलमान न्यायालय से इंसाफ की उम्मीद कर रहा था।
• 06 जुलाई 2005 : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के दौरान ‘भड़काऊ भाषण’ देने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी को भी शामिल करने का आदेश दिया. इससे पहले उन्हें बरी कर दिया गया था. मुसलमानों को फिर भी न्यायालय पर विश्वास था।
• 28 जुलाई 2005 : लालकृष्ण आडवाणी 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में रायबरेली की एक अदालत में पेश हुए. अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी के ख़िलाफ़ आरोप तय किए. मुसलमान का न्यायालय पर विश्वास बरकरार था।
• 20 अप्रैल 2006 : कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार ने लिब्रहान आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिव सेना की ‘मिलीभगत’ थी. पर उनपर कोई कारवाई नहीं हुई, फिर भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बरकरार रखा।
• जुलाई 2006 : सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ काँच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया. इस प्रस्ताव का मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया और कहा कि यह अदालत के उस आदेश के ख़िलाफ़ है जिसमें यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए गए थे. और न्यायालय से इंसाफ की तलब की • 19 मार्च 2007 : कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी ने चुनावी दौरे के बीच कहा कि अगर नेहरू-गाँधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री होता तो बाबरी मस्जिद न गिरी होती. बाबरी पर राजनीति की गई तब भी मुसलमानों ने न्यायपालिका पर विश्वास बरकरार रखा।
• 30 जून 2009: बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जाँच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 वर्षों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी. सात जुलाई, 2009: उत्तरप्रदेश सरकार ने एक हलफ़नामे में स्वीकार किया कि अयोध्या विवाद से जुड़ी 23 महत्वपूर्ण फ़ाइलें सचिवालय से ग़ायब हो गई हैं. तब भी मुसलमानों ने न्यायालयपर विश्वास बरकरार रखा।
• 24 नवंबर, 2009: लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश हुई. जिसमे आयोग ने अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया और नरसिंह राव को क्लीन चिट दी। तब मुसलमान न्यायालय से उम्मीद लगाए बैठे थे।
• 20 मई, 2010: बाबरी विध्वंस के मामले में लालकृष्ण आडवाणी और अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़दमा चलाने को लेकर दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट में ख़ारिज हो गई। तब भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बरकरार रखा।
• 26 जुलाई, 2010: रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई पूरी. 8 सितंबर, 2010: अदालत ने अयोध्या विवाद पर 24 सितंबर को फ़ैसला सुनाने की घोषणा की. 17 सितंबर, 2010: हाईकोर्ट ने फ़ैसला टालने की अर्जी ख़ारिज की। और मुसलमानों का सब्र बरकरार था न्यायालय के फैसले के इंतेजार में ।
• 30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित कर अयोध्या में विवादित जमीन को राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटने का फैसला किया था, इलाहाबाद उच्चन्यायालय में जब ज़मीन के मालिकाना हक को लेकर चल रहे मुकदमें के फैसले में काग़जात और सबूत के आधार पर फैसला ना करके आस्था के आधार पर ज़मीन को तीन टुकड़ों में बाँट दिया। फिर भी मुसलमान शांतिपुर्वक सवाल किये कि अगर वह ज़मीन जहाँ बाबरी खड़ी थी वहाँ श्रीराम जी पैदा हुए थे और यह साबित किया गया तो वह टुकड़ों में क्यो बांटा गया ? , मालिकाना हक के मुकदमे के फैसले में ज़मीन का मालिक एक पक्ष को ही अदालत घोषित करती है ना कि बटवारा करती है। फैसला किसी एक के हक़ में देनी चाहिए ।
• जनवरी 2011: हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, कयोंकि मुसलमानों को न्यायालय पर विश्वास है।
• मार्च 2011: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद मामले में बीजेपी नेता एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शिव सेना नेता बाल ठाकरे सहित 21 लोगों के खिलाफ नोटिस जारी किया. कयोंकि सीबीआई ने हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें ये नेता बरी हुए थे।
• 21 मार्च 2017: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के एक मात्र आस को तोड़ दिया, न्यायालय पर विश्वास को कमजोर कर दिया और बाबरी मामले में मध्यस्थता की पेशकश की. चीफ जस्टिस जे एस खेहर के मुताबिक अगर दोनों पक्ष राजी हो तो वो कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करने को तैयार हैं।
माननीय न्यायालय, अब बताए के मुसलमानों के सब्र का कोई पर्यायवाची है ? और कृपया ये भी बताएं की अगर सुलह से इसका हल होता तो आप ने 64 वर्ष का लंबा वक्फा क्यो लिया ? मुसलमानों के विश्वास का ये कैसा परिणाम रखा है आपने ? 64 वर्ष से सब्र की मुरत बने हुए अलपसंख समुदाय ने हमेशा आपकी गरीमा का ख्याल रखा है। क्या यह सत्य नहीं की सब्र का दुसरा नाम ही मुसलमान है ?
अलपसंखको से सुलह तब कौन करेगा जब मामला ऐसा है जिससे देश की राजनीति जीवित है ? क्या बहुसंख्यक समुदाय के लोग अल्पसंख्यक समुदाय के किसी भी प्रकार के पहल को स्वीकार करेंगे ?
आप खुद फैसला क्यो नहीं करते ? या फिर इस बात पर यकीन कर लिया जाये की इतने वर्षो बाद भी इस बात का कोई सबूत नही मिला की बाबरी मस्जिद को राम मंदिर तोड़ के बनाया गया था ?
माननीय न्यायपालिका, मुसलमान आज भी संविधान का उसी प्रकार पालन करता है जैसे कल करता था और आज भी कोशिश कर रहा की आपकी विश्वसनीयता बरकरार रहे, कृपया आप उनके सब्र को देख फैसला सुनाएं, भारतीय मुसलमान न्यायपालिका के फैसले को कबुल करेगा, परंतु बीच का रासता विवादों को और बढाएगा।
शुक्रिया----

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