Saturday 22 December 2018

यहाँ चेहरों के पीछे हैं मेरे देखे हुए चेहरे


कहीं सिमटे  हुए चेहरे , कहीं बिखरे हुए चेहरे
नज़र आते  हैं  इस सैलाब  में सूखे हुए चेहरे
सितारे, चाँद, सूरज हो गए सब दफ्न मिट्टी में
दिखाई  दे  रहे  हैं  हर  तरफ उतरे हुए चेहरे
हवाएँ  अब भी लाती हैं हमारे गाँव की ख़ुशबू
वो मिट्टी में सने और  धूप में भींगे हुए चेहरे
मुझे अश्क़ों को पीने का हुनर आता नहीं यारों 
छुपा लूँ किस तरह आँखों से ये बहते हुए चेहरे
खिलौनों  की  तरह  ख़ामोश  बैठे हैं दुकानों में
तुम्हें  मिल जाएँगे हर मोड़  पर खोए हुए चेहरे
मैं बचपन की किताबों में जो पन्ने मोड़ आया था
उन्हीं में आज  दिखते हैं  कई लिक्खे  हुए चेहरे
चला आया हूँ अंजानों की बस्ती में मगर परिमल
यहाँ  चेहरों  के   पीछे  हैं  मेरे  देखे  हुए  चेहरे
*Sameer Parimal*


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