खून-खराबा, जुल्मो-सितम, दहशतगर्दी अब हावी है
सहमा सहमा हे हर मंज़र सबका दामन दागी है
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सबका सपना कहाँ गया
वो भारत अपना कहाँ गया, वो भारत अपना कहाँ गया
जिस भारत की मिटटी में, आबे गंगा की अजमत थी
जिस भारत के सीने में हर एक की खातिर चाहत थी
जिस भारत के घर की जीनत मरियम, जैनब, सीता थी
जिस भारत के दिल में कुरान और हाथो में गीता थी
जिस भारत में नानक ने वहदत का गीत सुनाया था
वो भारत इकबाल ने जिसको अपनी जान बताया था
जिस भारत की अज़ान में शामिल होकर शंखे बजती थी
जिस भारत की मूरत जुम्मन के हाथो सजती थी
वो भारत अपना कहाँ गया, वो भारत अपना कहाँ गया
जिस भारत में पैदा होकर सब किस्मत पर इतराते थे
जिस भारत की वादी में हम मीर की गजले गाते थे
जिस भारत के खेतों में सरसों की मादक खुशबु थी
जिस भारत की सूखी रोटी में भी खुशहाली हरसू थी
जिस भारत में हम सब मिलकर मंदिर जाते थे
जिस भारत में दुर्गा को हम अपनी बहन बताते थे
जिस भारत में हिंदू-मुस्लिम का रिश्ता रूहानी था
फिरका, मज़हब, कौम से बढ़कर जज्बा हिन्दुस्तानी था
वो भारत अपना कहाँ गया, वो भारत अपना कहाँ गया
जिस भारत के आगे तकातवर फिरंगी घुटने टेक दिए
टीपू की एक ललकार से दुश्मन तलवारें सब फेंक दिए
जिस भारत ने चाहत को एक नया अंजाम दिया
तारीख के पन्नों पर अमिट ताजमहल का नाम दिया
जिस भारत में प्रेम दीवाने कितने रांझे, हीर हुए
जिस भारत में पैदा ग़ालिब, तुलसी, मीर, कबीर हुए
जिस भारत की मिटटी में बहकर गंगा इतराती थी
जिस भारत की ईद को दिवाली भी गले लगाती थी
वो भारत अपना कहाँ गया वो भारत अपना कहाँ गया
ये किस्सा था उस सोने की चिड़िया जिसकी पहचान थी
आओ अब तुम्हे तस्वीर दिखाऊ आज के हिंदुस्तान की
अश्फाकुल्लाह खां, बिस्मिल की वो क़ुरबानी बेकार गयी
अमन की देवी भारत माँ अपनों के हाथो हार गयी
कही पर मंदिर मस्जिद के झगडो ने क़त्ले आम किया
कही पर माँ बहनों की इज्ज़त को सबने नीलाम किया
पुरे मुल्क को जंग का एक मैदान बना डाला है सबने
बेबस और अपाहिज हिंदुस्तान बना डाला है सबने
वो भारत अपना कहाँ गया, वो भारत अपना कहाँ गया
खून में डूबा मंज़र मुल्क की चीख न बन जाये एक दिन
ये अपनी तहज़ीब कही तारीख न बन जाये एक दिन
मथुरा और गुजरात के दंगो से जब हम बंट जायेंगे
रफ्ता रफ्ता हम इतिहास के पन्नों से मिट ही जायेंगे
तब इस टूटे बिखरे मुल्क को नाम बताओ क्या दोगे
आने वाली नस्लों को पैगाम बताओ क्या दोगे
पुरखो की इस मिटटी की पहचान कहाँ से लाओगे
मुझे बताओ फिर ये हिन्दुस्तान कहाँ से लाओगे
वो भारत अपना कहाँ गया ???
ढूंढ रही है नम आँखे, अश्को से पुरनम आंखे
वो भारत अपना कहाँ गया ???
वो भारत अपना कहाँ गया ???
+++
कहीं धर्म बंटे है कहीं इन्सान बंटे है,
कहीं हिन्दू, सिख, इसाई तो
कहीं मुसलमान बंटे हैं,
•••
हमारी महफिल मे आ कर देख
यहां सिर्फ इन्सान मिलते है,
No comments:
Post a Comment
Welcome On My Blog