ये नाम बदलते हैं, हम काम बद्लते हैं |
महन्गाई की है मार दाम सुबह शाम बदलते हैं
हम घर के चूल्हे चौके का इंतजाम बदलते हैं
सोचा नही था आयेगा हुक्मरान कोई ऐसा
जो छोड के सब काम बस नाम बदल देगा
पहले आते थे हुक्मरान तो शहर बदलता था
ज़ालिम का फिर उस शहर से कहर बद्लता था
होते नहीं दिखता है मेरे शहर मे कुछ ऐसा
मुगलो की थी जो सराय उसको भी बदल डाला
अकबर का इलाहबाद था जो वो भी कुचल डाला
उर्दू नगर था सदियो से, था आबाद फैज़ाबाद भी
स्टेडियम इकाना था, हुमायूपुर भी था
था मीना बाजर, इक अली नगर भी था
बरेली एयरपोर्ट था, गोरखपुर एयरपोर्ट भी
कानपुर एयरपोर्ट भी था, था आगरा का एयरपोर्ट भी
कागज में हुआ काम नहीं नाम कुछ हुआ
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